غزل لری
داود سالاری حسنوند: نِوشـــتِم دِ بارُو، گِــــریوَه ام گِرِت دِ عشقِ هِراســـو ،گِــریوه ام گِرِت دِ شاخی که اِشکِس،دِ تاجِ سَــرِم غُروری که وا نِئی وِ بال ئو پَـــرم تو دونی دِ طالع ام چَنی غم بــییَه دِ خواری خـیـــالم فقط جَم بیـــیَه هَنی بی سـِتـــارِ سِتــــارِ خُــومِم مِه رُســــوا بیـیَه کار و بارِخُومِم […]
داود سالاری حسنوند:
نِوشـــتِم دِ بارُو، گِــــریوَه ام گِرِت
دِ عشقِ هِراســـو ،گِــریوه ام گِرِت
دِ شاخی که اِشکِس،دِ تاجِ سَــرِم
غُروری که وا نِئی وِ بال ئو پَـــرم
تو دونی دِ طالع ام چَنی غم بــییَه
دِ خواری خـیـــالم فقط جَم بیـــیَه
هَنی بی سـِتـــارِ سِتــــارِ خُــومِم
مِه رُســــوا بیـیَه کار و بارِخُومِم
که پی بی کـَـسینِ وِ خُوم مالَـنِــم
دِ تآوِ دلـــم روز و شُــــو نالَـــنِـــم
هَنی هم خِـــراوِم هَنی بی کـَـسِـم
جنازه جِـــوونی مَـنَه ری دَسِــــــم
و…
خوب بود.فقط غزل نبود.مثنویه
[پاسخ]